Saturday 7 December 2013

—चौं रे चम्पू! कोई चीन अमरीका की बात हतै तेरे पास?
—चचा, बात मेरे पास हर जगह की और हर तरह की हैं। इस हफ़्ते चायनीज़ व्हिस्पर के बारे में सुना।
—जे का बला ऐ रे?
—बताता हूं! डॉ. के. के. अग्रवाल इस महीने के अंतिम सप्ताह में फिर से हेल्थ मेला लगाने जा रहे हैं। उसके लिए कांस्टीट्यूशन क्लब में एक प्रेस कौंफ्रेंस हुई। उनकेअलावा एक डॉ. प्रवीण थे, तीसरे मुझे भी बुला लिया गया कि आमजन की जिज्ञासाओं का प्रतिनिधित्व करूंगा और उनकी तकनीकी बातों को शायद अपने आसानशब्दों में बोल पाऊंगा। पच्चीस-तीस पत्रकार थे वहां थे। डॉ. के. के. ने प्रेस कौंफ्रेंस शुरू होने से पहले कहा कि मैं एक प्रयोग करना चाहता हूं। उन्होंने कागज़ परकुछ लिखा और कोने में बैठे एक पत्रकार को मन ही मन में पढ़ने को कहा। फिर उन्होंने कहा कि आप अपनी बगल में बैठे पत्रकार के कान में, जो आपने पढ़ा है,बता दीजिए। अगले से कहा कि अगले के कान में बताए। सारे पत्रकारों ने एक-दूसरे के कान में वह वाक्य दोहराया और जब अंतिम पत्रकार से पूछा गया कि आपनेक्या सुना, तो उन्होंने खड़े होकर बताया, ‘एक राजा था, एक रानी थी, दोनों मर गए’। डॉ. के. के. ने वह कागज़ दिखाया जिस पर उन्होंने लिखा था, ‘एक राजा था, एकरानी थी, राजा को मलेरिया हो गया, रानी को निमोनिया, रानी बच गई, राजा मर गया’। नतीजा निकालते हुए उन्होंने कहा कि इस तरह से फैलती है अफवाह। इसी कोचायनीज व्हिस्पर कहा जाता है।
—चौं बताई उन्नै जे बात?
—उन्होंने कहा कि अफवाह सुनना नहीं, सुनना तो मानना नहीं। चाइनीज़ व्हिस्पर गाज गिरी किस पर? रोगी पर! लेकिन जब संकट आता है तो हर अफवाह सुनने योग्यमान ली जाती है। मरा सिर्फ़ राजा था और अंत तक जाते-जाते दोनों मर गए। किस कारण मरे, वह कारण ग़ायब हो गया। हमारे यहां इन दिनों डैंगू का पैनिक फैलाहुआ है। प्लेटलेट्स के बारे में कोई सही धारणा विकसित नहीं हुई। कोई कहता है कि प्लेटलेट्स दस हजार रह जाएं तब ख़ून चढाना चाहिए और जब ख़ून चढाया जाता हैतो कुछ निकलेगा ही। कोई कुछ कहता है, कोई कुछ कहता है। मूल स्रोत तक कोई जाता नहीं। स्रोत की खोज किए बिना, कान सुनी बात पर अमल होने लगता है।संकट में मरता क्या न करता, मान लेता है। जैसा नीम-हकीम डॉक्टर कहे, पडौसी कहें, सहयोगी कहें, करने लगता है।
—तौ तू बता का करैं?
—मैं वह ग़लती क्यों करूं जो दूसरे करते हैं। मैं क्यों बताऊं कि प्लेटलेट्स आठ हजार तक आने पर भी चढ़ाने की ज़रूरत नहीं पडती, बशर्ते रोगी के शरीर में कहीं से भीअपने आप ख़ून का रिसाव न हो। मैं क्यों बताऊं कि खून का अपने आप शरीर से रिसाव डेंगू के मरीज़ की हालत को अधिक बिगाडता है। मैं क्यों बताऊं कि खून नहींचढाना होता, डोनर के एक हाथ से ब्लड मशीन में आता है और मशीन बिना समय ख़राब किए प्लेटलेट्स निकाल लेती है। डोनर के दूसरे हाथ से ब्लड वापस चढतारहता है। डोनर का ब्लड डोनर के ही शरीर में हाथों-हाथ वापस चढ़ा दिया जाता है। मशीन में जो प्लेटलेट्स निकाले हुए होते हैं, वे डेंगू के रोगी को चढ़ा दिए जाते हैं।
—अरे बता, बता, जे बात तो जाननी चाहिए।
—फिर वही ग़लती क्यों करूं। मैं स्वास्थ्य विशेषज्ञ नहीं हूं। सुनी हुई बातें हैं। गलत भी हो सकती हैं। सही बात बताएंगे डॉक्टर या उनके लेख। मैं अनाड़ी दावा क्योंकरूं कि जानता हूं। आज न जाने कितने ऐसे लोग हैं जो दावा करते हैं कि हमारी इस औषधि से केंसर का नाश हो जाएगा। इस औषधि से हृदय का ऑपरेशन कराने कीआवश्यकता नहीं पड़ेगी। हमारे प्राणायाम से डॉक्टरों की छुट्टी हो जाएगी। इस तरह के दावे कई बार रोगों को बढाते हैं। सवाल जागरूकता का है। न तो आप अफवाह केशिकार हों, न किसी दावे के और न अंधी आस्था के आधार पर अपना निदान कराएं।
—अशोक चक्रधर